P. Gurob

2
Vgl. J. Mélèze-Modrzejewski, MNHMH G.A. Petropoulos 1 S. 65-69.Vgl. A. Kasher, The Jews in Hellenistic and Roman Egypt S. 49-51 (zu C.PJ. 1. 19).
Vgl. A. E. Samuel, Ptolemaic Chronology S. 77, 79-82.
Nd. C. P. J. 1. 19.
ε̣ἰ̣σ̣ι̣ό̣ν̣τ̣ο̣ς̣, J. G. Smyly, C.P.J. 1. 19, 14.
ἱματίου π̣ε̣τ̣[-17 Bst. -]ς με [καὶ ……..]πες ἕως ὅτου α[ - 25 Bst. - πολλά]κις [Καλλίππου τοῦ πρ]ογεγραμμένου β[ - 17 Bst. - τῶν δὲ παρ]όντων [ἐπιτιμώντων σοί τ]ε καὶ Καλλίππωι [- 30 Bst. -] [- 8 Bst. - διετε]λέσω σὺ ὑβρίζουσα [.]...[ - 30 Bst. -] [-14 Bst. -]α ἐπεμαρτυράμη[ν] διὸ, V. Tscherikover, C.P.J. 1. 19, 22-25.
L. συντ̲ά̲σσει statt συνσ[τ]ῆσαι, Wilcken, Archiv 7 70.
Wilcken erinnert dazu an den attischen Richtereid bei Pollux VIII 122.
2 u. 11
Vgl. für das chronologische Problem V. Tscherikover, C. P. J. 1. 19, 11.
8
[- - χαίρειν : χαίρειν wird von Wilcken, Archiv 7 70, ersetzt durch μετὰ τὰ λοιπὰ o. ä.
9-10
καθίσ[αι αὐτῆι κατομό]σαντας, V. Tscherikover, C.P.J. 1. 19, 9.
13
Die Lesung Διοσδότου wird abgelehnt, W. Clarysse, Anc.Soc. 4 (1973), S. 135.
14
Die Erg. κατηγόρησας → ὑπηγόρευσας, vgl. Select Papyri 2, Nr. 256 und C.P.J. 1. 19; ε̣ἰ̣σ̣ι̣ό̣ν̣τ̣ο̣ς̣ (B.L. 4, S. 35) steht auf dem Duplikat P. Petr. 3. 21 Z. 15 und ist entsprechend zu erg. in P. Gurob 2, Z. 14.
19-20
τὴν] | [γυναῖκα → -] | [γυναῖκα, vgl. Select Papyri 2, Nr. 256 und C.P.J. 1. 19.
20
ἔπτυσας [ὥστε, V. Tscherikover, C.P.J. 1. 19, 20.
21-26
Die Wiedergabe in der ed.pr. ist richtig (gegen B.L. 4, S. 35: zusammengestelt aus den beiden Duplikat-texten).
27
L. τιμῶμαι τἠν ὅ]βριν Ͱσ, Wilcken, Archiv 10 247 (wo indessen die Klammern falsch stehen).
31
μηνὸς [Περιτίου κ]ϛ, V. Tscherikover, C.P.J. I. 19, 31.
34
Die wirkliche Bedeutung von ἔπεργος ist nicht klar, C.P.J. 1. 19, 34.
37
[..]γομενο̣υ̣ τ̣[...]ο̣ρην → [βου]λ̣ομένο̣υ̣ κ̣[ατηγ]ο̣ρεῖν, vgl. Select Papyri 2, Nr. 256 und C.P.J. 1. 19, 37 und Anm.
41
συνσ[τ]ῆσαι → συντάσσει, vgl. Select Papyri 2, Nr. 256 und C.P.J. 1. 19.
42, 45
Vgl. J. Triantaphyllopoulos, Das Rechtsdenken der Griechen S. 62, Anm. 30 und S. 179, Anm. 178.
42
μὲν ἐν → μὲν <ἂν> ἐν, W. Clarysse, Z.P.E. 17 (1975), S. 252.
46-47
[τοῦ μὲν παρόντος, τοῦ δὲ μὴ παρὸντος ἐν τῶι δικαστ]η̣ρ̣ί̣ω̣ι̣ (B.L. 5, S. 39) → wohl [ἢ τοῦ ἑνὸς παρόν|τος ἐν τῶι δικαστ]η̣ρ̣ί̣ω̣ι̣, P. Heid. 8, S. 11-12, Anm. 5.
46-47
ἐὰν δὲ] ἀμφοτέρων τῶν ἀντιδίκων [τοῦ μὲν παρόντος, τοῦ δὲ μὴ παρόντος ἐν τῶι δικαστ]ηρίωι, H. J. Wolff, Justizwesen der Ptolemäer S. 25, A. 19.
47
ἑκάτερος οὖν (oder ἑκατεροσοῦν, vgl. ed.pr., S. 18): wohl Schreiberirrtum für ὁπότερος (nach dem Photo scheint ὁπο- nicht ausgeschlossen zu sein), P. Heid. 8, S. 12, Anm. 6.
48
συ̣θασθαι (l. συνίστασθαι): viell. συ<ν>θέ̣σθαι; der Lesung ἢ̣ κ̣α̣τ̣η̣γ̣ο̣ρ̣ε̣ῖ̣ν̣ (Select Papyri 2, Nr. 256) wird zugestimmt (nach dem Photo), P. Heid. 8, S. 12, Anm. 7 und 8.
48
κ̣α̣τ̣η̣γ̣ο̣ρ̣ε̣ῖ̣ν̣ und ἡ̣σ̣σ̣{θ̣}ᾶ̣σ̣θ̣α̣ι̣, C.P.J. 1. 19, vgl. auch die Bemerkungen von J. G. Smyly C.P.J. 1. 19, 14.
49
ἀδικῆσαι. ἀπεδικάσαμεν usw.: Wilcken, Archiv 7 70, beanstandet den Punkt (der aber im Papyrus steht, B.) und faßt die Worte als Hauptsatz der 2. Periode.

P. Hal.

2
P. Hal.

Mitteis, Chrest.

Fr die nicht genannten Texte, siehe unter den Haupteditionen.

21
Nd. C. P. J. 1. 19.

P. Petr. 3

Vgl. die Neukonstitution des Textes in P. Gurob Nr. 2; dazu auch oben BL und Wilcken, Archiv 7 S. 69; UPZ 1 S. 467.
Neudr. Mitteis, Chrestom. 21.
διάγραμμα. ∟κβ, Δύστρ[ο]υ ῑτ̄ κτλ. P. Hal. S. 208.
ἀντιλο̣ιδοροῦντος . . [. ἐ]νέπτυσας | [εἰς τὸ πρώσωπον κ]αὶ λαβομέ[νη μ]ο̣υ̣P. Hal. S. 116.
| [τῶν δὲ(?) παρό]ντων ἐπιτιμώντων σοι τε[ ] | κτλ. P. Hal. S. 116.
33f.
L. [ἐν τῶι ᾽Αρσινοίτηι νομῶ]ι, οὗ εἰσαγωγεὺς Πολυδεύκης ∟ κα. μηνὸς Περιτίου | 34 [.. καὶ τὸ ἔγκλη]μα ἔχε̣[ις κληθε]ῖ̣σ̣α ἐνώπια κ̣λήτορες…..φ̣ά̣νης Νι |35 [κίου Θρᾶιξ τὼν] ἑ̣πέργων Ζώπυρος usw.
| [Δωσιθέου μὲν(?) τὸ] ἔγκλημ[α] δ̣ό ντο ς καὶ ῾Η̣ρακλείας κτλ. P. Hal. S. 172.
6/7
Ende - Anfang l. [καθίσαν/…..]τος [ἡμᾶς/….] Πολυδεύ[κου τοῦ εἰσ]αγωγέως.
7
vgl. P. Hal. S. 209 Anm. 1.
26/7
L. etwa [καὶ ἄρξασα] εἴς με χειρῶν ἀδίκων το[ύτους δὲ κατὰ τὸ διάγραμμα ἐπεμαρτυράμην].
11
Ende l. τάδε ἔγνωμεν π[ερὶ |12 τῆς δίκη]ς̣.
13
L. Διοσδότου.
14
L. ]του σαυτὸν statt ]τους α̇ὐτοῦ.
15
Ende l. τῆ̣ (?) ᾽Απίωνος.
16
L. Πασύτιος.
19
L. δι[ότι.
20
Ende l. οὕ[τ]ως ἐτύπ[ωσας, ὥστε.
21
Anfang l. κ]αὶ λαβομ[ένη μου] τῆς.
24
L. [τῶν δὲ παρό]ντων ἐπιτιμώντων σοί τε [καὶ Καλλίππῳ.
25
L. [πλ]ηγῶν, Wilcken, Archiv 7 S. 16, 24f.
26
| [ εἴ]ς με χειρῶν ἀδίκων τ.[ ] | κτλ. P. Hal. S. 116.
28
L. ]τ̣ί̣μ̣η̣μα τῆς δίκη̣ς̣ [Ͱ.
29
L. το]ῦδε ἐν̣[επισκήπ (?)]τομαι ∟ κα.
32
L. ]ς̣ ἡ δὲ.
36
L. τούτου δὲ τοῦ] ἐγ̣κ̣λ̣ήμ̣[ατο]ς̣ ὄντος καὶ usw. Vgl. weiterhin den Wortlaut von P. Gurob 2, 35f.; δὲ ist durch μὲν geschrieben. Die Korrektur über der Zeile lautet:[[Δωσιθέου δὲ οὔτε παρόντος]] [[[αὐτοῦ οὔτε γρα]πτὸν λόγον θεμένου οὔτε καθισάντων τῶν δικα[σ-]][[τῶν ….. τὴν ἐ]πιδειχθεῖσαν μαρτυρίαν οὔτε τὰ δικαιώματα]][[.............] ... ἡμῖν καὶ τῶν τῆς ῾Ηρακλείας δικαιωμάτων]], vgl. P. Gurob S. 17.
45
L. εἴδη. Am Ende ἡμ | 46 [ῖν?
48
L. [γνώμηι τῆι δι]καιο̣τάτ̣η̣[ι.