P. Petr. 2 ⇧
᾽Ισιεῖον τῆς ᾽Α[ριστάρχου, W. Peremans, E. van ’t Dack, St. Hell. 9 (1953), S. 80.
(a)
Die Urkunde stammt aus dem Jahre 215 v.Chr., F. Uebel, Die Kleruchen S. 138, Anm. 3.
7
| Πάσιτι Κολώνθιος εἰς τὴν ξυλῖτιν | τὴν περὶ ᾽Αττίνου ῞Οσιεῖον τῆς ᾽Α [ριστάρχου] | νομαρχίας κτλ. Petr. III 88. Petr. III 88.
8
Die Ergänzung ᾽Α[ριστάρχου (vgl. B.L. III, S. 143) kann nur als Abkürzung geschrieben sein, J. Bingen, Chr. d’Ég. 39 (1964), S. 171/3.
14
Die Lesung πρεσβυτέρους (vgl. B.L. III, S. 143) ist nicht möglich, J. Bingen, Chr. d’Ég. 39 (1964), S. 173, A. 1.
16
Σεβέννυτον | [τῆς Μαιμά] χου νομαρχίας (ἀρούρας) κ | κρ[ότωνος] α∟, | [......] ......... κατα | [......] ..... τῆ[ς] ᾽Αριστάρ|[χου νομαρχίας] εἰς (ἀρούρας) ρ κρό[των]ος ζ∟, | [εἰς τὴν] βασιλικὴν γῆν καὶ πρε[σβυτέρων] | [κλήρους περ]ὶ Κερκεσοῦχα ὡσαύτως | |εἰς (ἄρουρας)..] κρότωνος γ∟δ´ | (hier abgebrochen). Petr. III 88.
21
πρε[σβυτέρους (vgl. B.L. III, S. 143) ist unwahrscheinlich, J. Bingen, Chr. d’Ég. 39 (1964), S. 173, A. 1.
1
κε τοῦ Λώιτος γ =, (ὦν) α (d. i. 3 Dr. 2 Ob., davon entrichtet 1 Dr. 4 Ob.). Petr. III 107 b.
5
Κολλεῦτ[ος] (B.L. 1) → Κολαθύτι̣[ος], W. Clarysse, H. Hauben, Archiv 24-25 (1976), S. 87; .. (ὧν) ιδ (B.L. 1) → [κ]ε̣∫̣c (ὧν) ιθ[-], W. Clarysse, H. Hauben, Archiv 24-25 (1976), S. 88.
6
Νεκθονίβι[ος (B.L. 1) → Νεχθο̣νίβι[ος, W. Clarysse, H. Hauben, Archiv 24-25 (1976), S. 86, Aanm. 7.
19
Κολλ..[…]ος (B.L. 1) → Κολαθ̣ύ̣[τι]ος, W. Clarysse, H. Hauben, Archiv 24-25 (1976), S. 87.
20
᾽Ορσου[ ] (B.L. 1) → ᾽Ορσον̣[οῦπιος], W. Clarysse, H. Hauben, Archiv 24-25 (1976), S. 90.
III 2
links ein Randvermerk: ..ν ὑπόθες | α ..[.....] | τῶι ἐχομέ(νωι). Petr. III 110a. Pr.
P. Petr. 3 ⇧
I
Die Urkunde stammt aus der Zeit Euergetes I, F. Uebel, Die Kleruchen S. 207, Anm. 9.
II 5
Die Sigle bedeutet nicht ,,γίνεται" (B.L. 1, S. 373), sondern λοιπόν, F. Uebel, Die Kleruchen S. 207, Anm. 10.